मुलाकातों और सौगातों का वो दौर न बदला...,
फ़िर उनके प्रति हमारे नजारे क्यों बदल गये...?
रातों की तन्हाई ,गमों की गहराई याद है हमें...,
फ़िर भी अपनी नजर के इशारे क्यों बदल गये...?
गम भुलाने की कोशिश में पीते रहे उम्र भर...,
फ़िर भी आज पीने के पैमाने क्यों बदल गये...?
मोहब्ब्त के हसीन सपने जो संजोये थे दिल में...,
फ़िर उन सपनों के लिये हमारे इरादे क्यों बदल गये...?
5 comments:
Very Nice,bahut achcha likhte hai aap.
बहुत बढिया गजल है।बधाई।
परमजीत बाली
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waqay me janab kya likha dala maza aagaya pad kar
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
kya baat kahi hai,sach me tareef ke layak hai.
kabile taareef kosish hai..
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