Monday, August 22, 2011

रावण-राज...!

 
दौलत के इस बड़े खेल में,
सब एक से एक खिलाड़ी हैं
सब के सब झूठे वादे हैं,
बस दिखने में ये अनाड़ी हैं


कोई काम करे है इशारे पर,
कोई चले है सिर्फ़ सहारे पर
कुछ निपुण हैं बस बकवासों में,
कुछ इधर-उधर की बातों में

कोई रौब जमाये जनता पर,
और दमन करे कोई सपनों का
आरोपों - प्रत्यारोपों  से फ़िर,
करते बचाव सब अपनों का

बहुत हो चुका रावण-राज ये,
अब दौर बदलते देर नहीं
फ़िर घड़ा पाप का फ़ूटेगा,
आज नहीं तो कभी और सही

Sunday, May 15, 2011

सफ़र अब तक...!

बचपन में हंसी थी
बरसती खुशी थी
हर तरफ़ था बस प्यार ही प्यार
कुछ समझ नहीं थी
वो दुनिया अलग थी
फ़िर नन्हें कदम चले विद्यालय की ओर
पढ़ना-लिखना,खेलना और शोर ही शोर
कुछ बड़े हुये तो रिश्तों को पहचाना
मां-बाप,चाचा,मामा और नाना
समाज और परिवेश से सीखा अपार
अब ये भ्रम था , हम हैं समझदार
अब जबकि मैं बड़ा हो गया हूं
लगता है सबसे अलग हो गया हूं
खुशी खो गयी है,न जाने अब कैसे
जीवन-संघर्ष की शुरुआत हो जैसे
चुनौतियां हर क्षण अब देती हैं दस्तक
बस यही है मेरा सफ़र अब तक ।

Tuesday, January 25, 2011

महक अभी बाकी है...!



कितना वक्त गुजर चुका है,लेकिन
संदल सी महक अभी बाकी है
मेरे अंतस के हर एक कोने में
तेरी एक मधुर झलक बाकी है ।

काजली कलंक थोपे अंजुमन ने,फ़िर भी
पुनर्मिलन की उर-आस अभी बाकी है
दर्पण में एक खुशी जो देखी थी कभी
इस खुशी को रिवाज करना बाकी है ।

इतर-रूप भरी इस दुनिया में
कहीं कुछ तो असलियत बाकी है
मन-मयूर का स्वच्छंद नर्तन,पर
परिवेश की तलाश अभी बाकी है ।

Monday, January 10, 2011

उदास मन...!


आज फ़िर मन उदास है मेरा

बिखरा पड़ा है फ़िर से सवेरा


कहीं कुछ खो गया है जीवन से


यूं ही गुमनाम जैसे हो बसेरा |

  
वक्त की कमी नहीं आज मुझे

फ़िर भी बे-वक्त आया है अंधेरा


तमाम उम्र अभी बाकी है


कोई फ़िर भर दे उपवन मेरा |