परिवर्तन की दुनिया में विचारों का स्थान सर्वोपरि है....विचार ही मानव की आंतरिक एवं वाह्य मनः स्थितियों के बदलाव के लिये जिम्मेदार होते हैं......इन्हीं विचारों का मंथन करते हुये हम अपने अंदर हुये बदलावों को जब महसूस करते हैं.......तब ये पता चलता है कि हम कितना बदल चुके हैं.....कल तक जो हमारे लिये महत्वपूर्ण थे,,,,,,, आज महज एक आवश्यकता बन गये हैं.....कल तक हम उनका सम्मान करते थे, आज सामने आने पर उनसे ही नजरें चुराते हैं.....आखिर क्यों.....? इसका जवाब अगर स्वयं आत्ममंथन किया जाये तो बेहतर होगा......वक्त के साथ हुये इस बदलाव के लिये जिम्मेदार कौन है.......?-हम , हमारे संस्कार , हमारी मानसिकता या और कुछ.....?
शायद इसके जिम्मेदार हम खुद हैं......हमारी मानसिकता तो अपने आप ही बदल जाती है-समय और परिवेश के अनुसार ....पर आत्मसंयम द्वारा हम इस स्थिति को कुछ हद तक संभाल सकते हैं......
अब सवाल ये है कि आत्मसंयम और आत्ममंथन के लिये इतना समय किसके पास है......!.....हम इतने व्यस्त है कि इन सब बातों के लिये हमारे पास वक्त ही नहीं है........हां इंटरनेट , चैटिंग,मैसेजिंग,मूवीज.......इन सब के लिये वक्त की कोई कमी नहीं है........हम दिन और रात मोबाइल और इंटरनेट द्वारा दूर -दूर के दोस्तों से संपर्क में रहते हैं......पर अपने आस पास के व्यक्तियों के संपर्क में शायद ही रहते हों......इसके लिये भी हम ही उत्तरदायी हैं....हम वही करते हैं जिसमें हमें आनन्द आता है.....पर अपने लिये दूसरों की भावनाऒं के साथ खिलवाड करना भी सही नहीं है.......तो फ़िर इसका एक ही उपाय है .......खुद को इस काबिल बनाया जाये कि हम पर कोई उंगली न उठा सके .......खैर जो आसानी से हो नहीं सकता उस पर दिमाग क्यों खर्च किया जाये.....?
पर कभी न कभी तो हमें इस बात की आवश्यकता पडेगी कि हम भी दूसरों के लिये जीना सीखें..........तब शायद हमें जरूरत पडे -आत्मसंयम,आत्मविश्वास एवं आत्ममंथन की.......तब हमें एक और बदलाव की जरुरत पडेगी....पर उस समय ये इतना आसान नहीं होगा.......तो क्यों न अभी से इस दिशा में कुछ कदम उठाया जाये.......हम सुधरेंगे जग सुधरेगा....इस भावना को आत्मसात कर आवश्यकता है सपनों की दुनिया से हकीकत की दुनिया में आने की और......कुछ करने की....!