Sunday, May 15, 2011

सफ़र अब तक...!

बचपन में हंसी थी
बरसती खुशी थी
हर तरफ़ था बस प्यार ही प्यार
कुछ समझ नहीं थी
वो दुनिया अलग थी
फ़िर नन्हें कदम चले विद्यालय की ओर
पढ़ना-लिखना,खेलना और शोर ही शोर
कुछ बड़े हुये तो रिश्तों को पहचाना
मां-बाप,चाचा,मामा और नाना
समाज और परिवेश से सीखा अपार
अब ये भ्रम था , हम हैं समझदार
अब जबकि मैं बड़ा हो गया हूं
लगता है सबसे अलग हो गया हूं
खुशी खो गयी है,न जाने अब कैसे
जीवन-संघर्ष की शुरुआत हो जैसे
चुनौतियां हर क्षण अब देती हैं दस्तक
बस यही है मेरा सफ़र अब तक ।