Tuesday, January 25, 2011

महक अभी बाकी है...!



कितना वक्त गुजर चुका है,लेकिन
संदल सी महक अभी बाकी है
मेरे अंतस के हर एक कोने में
तेरी एक मधुर झलक बाकी है ।

काजली कलंक थोपे अंजुमन ने,फ़िर भी
पुनर्मिलन की उर-आस अभी बाकी है
दर्पण में एक खुशी जो देखी थी कभी
इस खुशी को रिवाज करना बाकी है ।

इतर-रूप भरी इस दुनिया में
कहीं कुछ तो असलियत बाकी है
मन-मयूर का स्वच्छंद नर्तन,पर
परिवेश की तलाश अभी बाकी है ।

1 comments:

App Development Bangalore said...

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