कितना वक्त गुजर चुका है,लेकिन
संदल सी महक अभी बाकी है
संदल सी महक अभी बाकी है
मेरे अंतस के हर एक कोने में
तेरी एक मधुर झलक बाकी है ।
काजली कलंक थोपे अंजुमन ने,फ़िर भी
पुनर्मिलन की उर-आस अभी बाकी है
दर्पण में एक खुशी जो देखी थी कभी
इस खुशी को रिवाज करना बाकी है ।इतर-रूप भरी इस दुनिया में
कहीं कुछ तो असलियत बाकी है
मन-मयूर का स्वच्छंद नर्तन,पर
परिवेश की तलाश अभी बाकी है ।
1 comments:
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