
दौलत के इस बड़े खेल में,
सब एक से एक खिलाड़ी हैं
सब के सब झूठे वादे हैं,
बस दिखने में ये अनाड़ी हैं
कोई काम करे है इशारे पर,
कोई चले है सिर्फ़ सहारे पर
कुछ निपुण हैं बस बकवासों में,
कुछ इधर-उधर की बातों में
कोई रौब जमाये जनता पर,
और दमन करे कोई सपनों का
आरोपों - प्रत्यारोपों से फ़िर,
करते बचाव सब अपनों का
बहुत हो चुका रावण-राज ये,
अब दौर बदलते देर नहीं
फ़िर घड़ा पाप का फ़ूटेगा,
आज नहीं तो कभी और सही